हो! आळस! हे एकच कारण आहे इतके दिवस निपचित पडून राहण्यासाठी. पण आता खूप झालं , आता सुरुवात करायची आहे, असं नुसतं बसून कोडी थोडीच सूटणार आहेत. डाव तर कधीच मांडला गेला आहे...पण मीच शांत बसलो होतो, एकही चाल न खेळता.
पूरे का पूरा आकाश घूमाकर बाज़ी देखी मैंने।
काले घर में सूरज रखके तुमने शायद सोचा था...मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे।
मैंने एक चिराग जलाकर अपना रास्ता खोल लिया।
तुमने एक समंदर हाथ में लेकर मुझपर ढेल दिया।
मैंने नू की कश्ती उसके ऊपर रख दी।
काल चला तुमने और मेरी जानिब देखा।
मैंने काल को तोड़ के...लम्हा लम्हा जीना सिख लिया।
मेरी खुदी को तुमने चंद चमत्कारों से मारना चाहा।
मेरे एक प्यादे ने तेरा चाँद का मोहरा मार लिया।
मौत की शेह देकर तुमने समझा था...अब तो मात हुई।
मैंने जिस्म का होल उतार के सौंप दिया और रूह बचाली।
पूरे का पूरे आकाश घूमाकर अब तुम देखो बाज़ी।
-गुलज़ार
1 month ago
2 comments:
Thanks for your comment on the blog.
It is nice to know that you liked the pictures.
>>> पण आता खूप झालं , आता सुरुवात करायची आहे.
- Naveen lekhachi vaaT paahto :)
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